हैलो बच्चों ! आज के इस लेख मे अध्याय 2 के बारें मे जानने वाले है । अध्याय सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु रहेगा । Microorganisms: Friend and Foe.
जब आप देखते है प्रकर्ति मे विभिन्न प्रकार के जीव दिखाई देते है । लेकिन अपने खुली आँखों से प्रत्येक जीव को नहीं देख पाते । पत्ता है क्यों ? क्यों कि कई जीव इतने सूक्ष्म होते है । बिना सूक्ष्मदर्शी नहीं देखे जा सकते है । ऐसे जीवों को सूक्ष्मजीव कहते है । अपना आज का लेख भी इसी से संबंधित है ।
किसी भी अध्याय को यदि खेल - खेल मे सिखा जाए, तब कैसा होगा । लेख के अंत मे आपको ऐसा ही कुछ मिलेगा ।
सूक्ष्मजीव काफी अलग – अलग रूपों मे पाए जाते है । इसी के साथ संख्या मे भी अधिक होते है । इसलिए क्या इन्हे अलग – अलग रूपों मे रखा जाता है । या फिर एक ही रूप मे रखा जाता है ।
सूक्ष्मजीवों का वर्गीकरण :
जब संख्या मे अधिकता होती है । तब उनको अलग – अलग गुणों के आधार पर अलग – अलग विभक्त कर दिया जाता है । जिससे उनके अध्ययन मे आसानी हो सके ।
सूक्ष्मजीवों को चार वर्गों मे बाँटा गया है –
- जीवाणु
- कवक
- प्रोटोजोआ
- शैवाल
नोट :
विषाणु भी है तो सूक्ष्म, लेकिन अन्य सूक्ष्म जीवों से भिन्न होते है ।
इनको गुणन करने के लिए परपोषी के शरीर की आवश्यकता होती है ।
उदाहरण के लिए जुकाम, पोलियो, खसरा आदि ।
प्रोटोजोआ : अतिसार, मलेरिया आदि रोग ।
जीवाणु : टायफाइड, क्षय रोग आदि रोग ।
क्या आप जानते है जीवाणु रहते कहाँ पर है । चलिए ये भी जान लेते है –
आवास : सूक्ष्म जीव :
सूक्ष्मजीव प्रत्येक प्रकार के आवास मे पाए जाते है । जैसे शीत एवं गर्म । मरुस्थल एवं दलदल आदि ।
ये समूह मे भी पाए जाते है और अकेले भी जैसे अमीबा ।
सूक्ष्मजीवों का हमारे शरीर पर भी बहुत ही प्रभाव होता है ।
यह मित्र और शत्रु की भांति हमारे लिए कार्य करते है । जैसे दही मे लेक्टोबेसिलस जीवाणु पाया जाता है
जो हमारे लिए लाभदायक होता है । दूसरे पूर्व मे आपने रोगकारक जीव देखे है ।
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